Editorial: सीएम के धरना खत्म करने के आग्रह पर किसान करें गौर

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Farmers should pay heed to CM request to end the protest

Farmers should pay heed to CM request to end the protest: पंजाब-हरियाणा की सीमा पर शंभू बॉर्डर पर बीते साढ़े चार महीने से एमएसपी की मांग को लेकर धरना दे रहे पंजाब के किसानों से मुख्यमंत्री भगवंत मान का यह आग्रह काबिलेगौर है कि राज्य में एमएसपी ही एकमात्र मामला नहीं है, बल्कि उद्योगों की कमजोर स्थिति और गिरता जल स्तर स्तर भी चिंता का विषय बन चुका है। निश्चित रूप से पंजाब में धरने-प्रदर्शन, सडक़-हाईवे और रेल रोके जाने की वजह से उद्योग-धंधों को भारी नुकसान पहुंच रहा है। अब तो स्थिति यह हो गई है कि उद्यमी पंजाब आने से इसी वजह से कतराने लगे हैं कि न जाने कब किसान संगठन मांगों को लेकर उठ खड़े हों और सडक़-हाईवे-रेल रोक कर बैठ जाएं। ऐसे में न उद्योगों तक कच्चा माल पहुंच पाएगा और न ही तैयार माल को बाहर भेजा जा सकेगा। अब शंभू बॉर्डर के आसपास के इलाके के लोग त्राहिमाम  की स्थिति में हैं, उनका जीवन दूभर हो चुका है। उन्हें कई किलोमीटर का चक्कर लगाकर अपने गंतव्य तक पहुंचना पड़ रहा है। अनेक बाद किसानों से इसकी गुहार लगाई जा चुकी है, लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हैं। अब फिर जब मुख्यमंत्री मान ने धरने को हटाने का आग्रह किया है तो किसानों की ओर से मांगें रख दी गई हैं, कि उनके पूरा होने तक वे यहां से नहीं हटेंगे।

किसानों का कहना है कि उनकी केंद्र सरकार के साथ बैठक तय कराई जाए। हालांकि इससे पहले किसानों और केंद्र सरकार के बीच छह दौर की बातचीत हो चुकी है। सबसे अंतिम बैठक के दौरान केंद्र सरकार ने किसानों को गेहूं,धान के अलावा पांच अन्य फसलों पर एमएसपी देने की बात मानी थी, लेकिन किसान सभी 23 फसलों पर एमएसपी की मांग को लेकर अड़े रहे और वार्ता विफल हो गई। प्रश्न यह है कि आखिर पंजाब के किसान केवल अपनी शर्तों को ही इतना जरूरी क्यों समझ रहे हैं, उनके पास अपना एजेंडा है, जिसके इतर वे नहीं जाना चाहते। हालांकि इस बीच चाहे केंद्र सरकार उनसे वार्ता करे, उसे स्वीकार नहीं करना है और फिर चाहे पंजाब के मुख्यमंत्री ही उन्हेें आमंत्रित करके बैठक करके यह समझाने की कोशिश करें कि धरनों से पंजाब का नुकसान हो रहा है।

ऐसे में धरने समाप्त किए जाने चाहिए। किसानों का कहना है कि उन्हें पंजाब सरकार से कोई दिक्कत नहीं है, पंजाब सरकार उन्हें दिल्ली बॉर्डर तक पहुंचाने की कवायद अंजाम दिलाए या फिर केंद्र सरकार से बातचीत तय कराए। अब यह अजीब स्थिति नहीं है तो और क्या है कि किसान अपनी हठधर्मिता को नहीं छोड़ रहे हंै। उनके धरने की वजह से पंजाब को  पहले ही भारी नुकसान हो रहा है, यह नुकसान खुद किसानों का भी है और पंजाब सरकार एवं यहां की जनता का भी है। अब यह कहना हास्यास्पद है कि उन्हें दिल्ली जाने दिया जाए ताकि पंजाब में दिए जा रहे उनके धरने से राहत मिले।

अगर ऐसा हुआ तो इससे कहीं दूसरे राज्य में समस्या पैदा होगी वहीं दिल्ली में भी जनजीवन प्रभावित होगा। क्या ऐसा होना चाहिए। क्या पंजाब के अधिकार ही सर्वोच्च है कि उसके यहां से शुरू ही धरने की समस्या कहीं और भेज दी जाए। वास्तव में होना तो यह चाहिए कि इस विवाद का समाधान पूर्ण रूप से हो। अगर किसान चाहते हैं कि केंद्र उनकी बात सुने तो उन्हें इसमें ईमानदारी प्रदर्शित करनी होगी, यह नहीं हो सकता कि अकेले किसान अपनी बात सुनाएं और फिर समाज एवं कृषक समाज के हितों की दुहाई दी जाए। जरूरत इसकी भी है कि इस विषय पर राजनीति न हो, क्योंकि राजनीति की वजह से ही तमाम मुद्दों का समाधान नहीं हो पा रहा। यह पूरी तरह से निश्चित है कि विपक्ष जोकि किसान हितैषी होने का दावा कर रहा है, सरकार में आने के बाद किसानों की सभी मांगों को पूरा नहीं कर पाएगा। क्योंकि इस समाज में केवल किसान ही नहीं रह रहे हैं, अपितु दूसरे वर्ग भी उससे जुड़े हैं, जोकि अपने-अपने फायदे के लिए काम कर रहे हैं।

हालांकि फिर भी किसानों के प्रति सभी की हमदर्दी होनी चाहिए और उन्हें उनकी फसल का सर्वोच्च रेट मिलना चाहिए, जोकि आवश्यक है। गौरतलब है कि पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है, लेकिन यह भी सच है कि पंजाब एक उद्योग प्रधान राज्य भी है। हालांकि आजकल में पंजाब के उद्योगों को भारी नुकसान पहुंच रहा है, इस तरफ कौन ध्यान देगा। उद्यमी तो सडक़ भी नहीं रोक सकते, न ही वे कहीं धरना लगा कर बैठ सकते हैं।

मुख्यमंत्री भगवंत मान की चिंता जायज है कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो निवेश कहां से आएगा, नए उद्योग कैसे लगेंगे। निश्चित रूप से किसान संगठनों को व्यापक हित में सोचने की जरूरत है। यह भी आवश्यक है कि जमीनी पानी को बचाने के लिए किसान काम करें। अगर वे एमएसपी के लिए लड़ सकते हैं तो फिर उन्हें ऑर्गेनिक खेती, जमीनी पानी बढ़ाने एवं पराली आदि के जलाने से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए भी लड़ना चाहिए। यह काम सिर्फ एक सरकार का नहीं हो सकता, यह सामूहिक दायित्व की बात है। 

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